Kanhaiya Kumbhar Ki Samajhdari - Hindi Kahani - Bachhon Ki Kahaniyan
एक गांव में तीन कुंभार भाई रहते थे। बहुत ईमानदारी से और मेहनत से वह मटके बनाकर अच्छी कीमत में बेचा करते थे। तीनों भाइयों में से दो बड़े भाई बिरजू और सरजू मटके बनाते थे और सबसे छोटा भाई कन्हैया हिसाब में होशियार और बहुत समझदार होने के कारण वह मटके शहर ले जाकर बेचता था। दोनो भाई सुबह शाम मटके बनाते थे और कन्हैया रोज़ 25 से 30 मटके ले जाकर बेच देता था।
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बहुत समय से तीनो भाइयों का काम ऐसे ही चल रहा था और वह अपनी आमदनी से खुश थे। एक दिन एक नया कुंभार शहर में मटके बेचने आया। उसका नाम गोपू था गोपू कुंभार। उसने देखा की कन्हैया के मटके अच्छे बिक रहे है तो उसने भी पास ही में मटके बेचना शुरु किया। गोपू कुंभार ने देखा की कन्हैया की बहुत अच्छी आमदनी हो रही है और उसकी कम इसलिए वह अपनी आमदनी बढ़ाने की तरकीब सोचने लगा।
कन्हैया बहुत लंबे समय से मटके बेच रहा था इसलिए लोग ज्यादातर उसी के पास मटके लेने पहले जाते थे। गोपू ने सोचा की क्यों ना मैं दाम थोड़े कम कर दू जिससे सभी ग्राहक मेरे पास आने लगें! गोपू कुंभार ने अपने मटकों के दाम लगभग आधे कर दिए। इस से बहुत से खरीरदार गोपू से मटके ले गए। लेकिन गोपू के सारे मटके आधे दिन में ही बिक गए क्योंकि वह 9 से 10 मटके ही बेचने के लिए लाता था क्योंकि उसे वह खुद ही बनाने पड़ते थे। वह सुबह में जल्दी या शाम को, रात में जब हो सके मटके बनाता था और खुद ही बेचने आता था इसलिए ज्यादा मटके नहीं ला पाता था। गोपू के मटके ख़त्म होते ही कन्हैया के मटके फिर से बिकना शुरू हो गए लेकिन कम ही मटके बिके।
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कन्हैया जब शाम को घर लौटा तो अपने साथ आधे मटके वापस ले आया। बड़े भाई बिरजू और सरजू ने कन्हैया से पूछा की क्या हुआ, तुम तो कभी इतने मटके वापस नहीं लाते! कन्हैया ने दोनो भाईयों को गोपू कुंभार के बारे में बताया की वह खरीददारों को लुभाने के लिए आधी कीमत में मटके बेच रहा है। कन्हैया के दोनो भाई बहुत चिंता में पड़ गए की अब क्या करे? उन्होंने कन्हैया से पूछा की क्या अब मटके बनाना कम कर दे? अगर रोज कम मटके ही बिकेंगे तो ज्यादा मटके बनाकर क्या करेंगे? कन्हैया ने कहा की इसकी कोई जरूरत नहीं है। हमे किसी और की वजह से अपने काम में बदलाव नहीं लाना चाहिए। आप उतने ही मटके बनाइए। हमें समय के साथ अपने काम को बढ़ाना चाहिए, ना की उसे काम करना चाहिए। आप हो सके उतनी ज्यादा मेहनत करिए और हम ज्यादा मटके बेचेंगे। बिरजू और सरजू को कुछ भी समझ नहीं आया की एक तो मटके बिक नही रहे तो और ज्यादा क्यों बनाए पर उन्हें कन्हैया की होशियारी और समझदारी पर भरोसा था और वह दोनो मान गए।
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गाेपू ने आधे दाम में मटके बेचना जारी रखा पर अब उसे दो ही दिन में समझ आ गया की ऐसे तो नुकसान हो रहा है। मटके बिक तो जाते है पर आधी कीमत में और इसमें उसका गुजारा नहीं हो पाएगा। वह ज्यादा मेहनत करने लगता है और 10 की जगह रोज 20 मटके बनाने लगता है। कन्हैया की गोपू पर पूरी नजर रहती है। कन्हैया अपने मटकों के दाम बिलकुल कम नहीं करता। देखते ही देखते फिर से खरीददार कन्हैया के पास से मटके लेने लगते है। गोपू कुम्भार को कुछ समझ नही आता की यह कैसे हुआ! एक खरीददार जब गोपू के पास से कन्हैया की और जाने लगता है तभी गोपू उसे रोकता है और पूछता है की आखिर आप मुझसे मटका क्यों नही ले रहे जबकि मैं आधे दाम में मटके दे रहा हूं? खरीददार ने कहा की भाई पहले जरा अपने मटके तो देखो सारे आड़े तेडे बने है, कोई भला इसे क्यों खरीदेगा? गोपू को समझ आया की जल्दी जल्दी में वह मटके अच्छी तरह नहीं बना पाया। अच्छा मटका बनने में समय लगता है और गाेपू ने समय बचाने के चक्कर में मटकों की गुणवत्ता पर ध्यान ही नहीं दिया। वह सर पकड़कर बैठ गया।
पूरे दिन में गोपू कुंभार का एक भी मटका नही बिका और कन्हैया के सारे मटके बिक गए। गोपू कन्हैया के पास गया और उससे माफी मांगी की उसने कन्हैया के खरीददारों को कम पैसों का लालच देकर गलती की और खुदका ही नुकसान कर बैठा। कन्हैया ने उसे समझाया की कोई बात नहीं, जो हो गया सो हो गया। वह जानता था की आधी कीमत में ज्यादा दिन गोपू मटके नहीं बेच पाएगा। उसने गोपू से कहा की वह समझता है की गोपू को अपनी आमदनी बढ़ानी है और वह मेहनती भी है, लेकिन वह अकेला है और सब काम खुद ही नहीं कर सकता। कन्हैया ने गोपू को काम बढ़ाने का एक उपाय बताया जिसे सुनकर गोपू बहुत खुश हो गया और मान भी गया। कन्हैया ने गोपू से कहा ही वह पहले की ही भाती कम लेकिन अच्छी गुणवत्ता वाले मटके बनाए और उसे अच्छी और सही कीमत में बेचे। फिर जब गोपू के मटके बिक जाए तो वह चाहे तो कन्हैया से ही दूसरे मटके कम कीमत पर ले जिसमें कन्हैया का भी मुनाफा होगा और उसे बेचे। इस तरह वह अपने मटकों के अलावा भी और कमाई कर पाएगा और ज्यादा बिक्री से अच्छी आमदनी कमा पाएगा।
सारे मटके बेचकर कन्हैया घर पहुंचा और उसने सारी बात अपने दोनो बड़े भाईयो को बताई। सरजू और बिरजू इस बात से बहुत खुश थे की उनका रोज़गार बढ़ने वाला था। कन्हैया ने भी कहा की अब वह भी मटके बनाएगा जिससे मटके और ज़्यादा बने और अपने भाइयों का हाथ बटा सकें। कन्हैया कुंभार ने अपनी होशियारी और समझदारी से परेशानी को हल कर दिया।
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