Yah Khushiyon Ke Gubbare Hai - Hindi Kahaniyan - हिंदी कहानी

Yah Khushiyon Ke Gubbare Hai - हिंदी कहानी -

यह खुशियों के गुब्बारे है

Yah Khushiyon Ke Gubbare Hai - Hindi Kahani
Yah Khushiyon Ke Gubbare Hai - Hindi Kahani



  बार बार मेरा ध्यान मेरी कलाई पर बंधी घड़ी पर जा रहा है, आज वक्त है कि कट ही नहीं रहा। सभी अपने अपने बच्चों को लेने स्कूल की गेट पर पहुंच रहे है और समय रहते आने की संतुष्टि भी उनके चेहरे पर दिख रही है। आज मैं भी मन बनाकर समय से पहले ही आ गई लेकिन शायद थोड़ा जल्दी ही आ गई, यह पंद्रह - बीस मिनट लगता नहीं था कि गुजरने में इतना वक्त लेंगे वरना जब देर होती है तब तो मिनिट भी कुछ ही सेकण्ड के बराबर लगते है। 
  स्कूल की बेल बज चुकी है और सभी बच्चे ऐसे दौड़कर आ रहे है जैसे समंदर की कोई लहर आयी हो। स्कूल खत्म होंकर बाहर आने की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक रही है और लहरों के भांति ही मन प्रफुल्लित कर रही है।
  मेरी नज़रें इन सब में आतुरता से धरा को ढूंढ रही है। वो रही मेरी प्यारी धरा जो खिलखिलाती हुई दौड़ी आ रही है। सीधे आकर बाहों मे भरने को हाथ बढ़ा देती है और दुनिया भर की खुशी मुझे एक ही पल में दे देती है। मेरी नन्ही सी प्यारी धरा, क्या इस से बढ़कर मैंने कुछ चाहा था जीवन में? कुछ नहीं। 


  धरा अभी नादान है, किस बात कि ज़िद करनी है और किस बात कि नहीं यह बात उसे कैसे पता होगी! यही सोचकर मैं उसकी छोटी बड़ी ज़िद्द के आगे घुटने टेक देती हूं या शायद उसकी शरारतों मे अपना बचपन फिर से जी लेती हूं। स्कूल से निकलते ही धरा की फरमाइशें शुरू हो जाती है और मैं चाहती तो हूं ऐसी कोई चीज़ ना हो जो उसे पसंद आए और मैं उसे ना दे पाऊ लेकिन क्या यह सही है? अक्सर मन इसी कशमकश में उलझा रहता है कि क्या धरा की हर ज़िद्द को पूरा करना चाहिए? कई बार मैने नवीन से भी कहा है कि धरा की हर फरमाइश पूरी करने से वह ज़िद्दी हो रही है लेकिन नवीन भी मेरी एक नहीं सुनते और कहते है कि मेरी धरा के लिए मैं जितना भी करू वह कम है और बच्चे तो इस उम्र में ज़िद करते ही है भला इतनी प्यारी बच्ची कभी बिगड़ सकती है? और मैं चुप हो जाती हूं क्योंकि धरा को मैं भी किसी बात पर उदास नहीं देख सकती। कल रात ही धरा ने बाहर खाने की फरमाइश की थी तो आज भी डिनर बाहर ही करेंगे। यह इस महीने में पांचवी बार होगा लेकिन इसपर भी नवीन यही कहते है कि कोई बात नहीं रेखा इसी बहाने तुम्हें भी तो रसोई से छुट्टी मिल जाती है!


  "मम्मी गुब्बारा, गुब्बारा!" कहकर धरा गुब्बारा बेच रहे एक लड़के की और इशारा कर रही है, अब तो धरा का यह नियम ही बन गया है कि दो चार गुब्बारे ले और उसे फोड़ते हुए घर जाए, जाने क्या खुशी मिलती हैं इसे इसमें और मना करो तो रोने लगती है। वह गुब्बारे वाला लड़का भी उम्र में काफी कम ही लगता है, मुश्किल से पंद्रह साल का होगा। बच्चों को गुब्बारे बेचते वक्त वह मुस्कुरा रहा है शायद उसे अपना यह काम पसंद है या फिर अपनी बिक्री से खुश होगा। लेकिन क्या यह उम्र खुद उसके खेलने की नहीं है? जाने क्या क्या परेशानियां होगी उसके जीवन में! अचानक कई सारे सवाल मेरे मन में उभर आए। हाथ से खींचकर धरा मुझे गुब्बारा खरीदने ले ही आयी और लड़के से कहा ," बड़े भैया, मुझे ढेर सारे गुब्बारे दो।" लड़के ने मुझे देखा, उसकी मुस्कान जाने क्यों अचानक फीकी पड़ चुकी हैं। मैने उसे कहा, "दो ही गुब्बारे देना।" उसने धरा को गुब्बारे दिए पर लगा शायद वह किसी सोच मे गुम है। जब मैने पैसे थमाए तो वह अपनी सोच से बाहर निकला और पैसे लेकर अपना काम करने लगा। मुझे यह बात थोड़ी अजीब लग रही है। आख़िर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उसकी मुस्कान गायब हो गई! क्या मेरी वजह से? पर ऐसा कैसे हो सकता है मैंने तो उस से कई बार गुब्बारे लिए है पर यह आज पहली बार हुआ ऐसा भी नहीं लगता। लेकिन आज मुझे यकीन है कि मेरी ही वजह से कुछ हुआ है। मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो वह हमे थोड़ी दूर से देख रहा है। धरा अपने गुब्बारे फोड़ रही है, अरे यह क्या, वह यही तो नहीं देख रहा कहीं? क्या धरा का गुब्बारा फोड़ना उसे पसंद नहीं आया? नहीं ऐसा नहीं हो सकता, शायद यह मेरा वहेम है और उसे कोई और ही परेशानी हो सकती है। या हमें देखकर उसे कुछ याद आ गया हो, कोई याद आ गया हो। मैं भी ना कुछ भी सोचने लगती हूं।

 
  शाम को हम डिनर से पहले शॉपिंग पर आए है। धरा तो बहुत खुश है और नवीन भी। यहां भी धरा ने एक गुब्बारे वाले को ढूंढ ही लिया है और नवीन को खींचकर ले आयी। कहती है, "अंकल ढेर सारे गुब्बारे दो।" नवीन ने गुब्बारे वाले से कहा, " दे दो चार गुब्बारे।" धरा गुब्बारे लेकर उछलने लगी और देखते ही देखते उसने दो गुब्बारे फोड़ दिए। मैंने तुरंत उस गुब्बारे वाले कि तरफ देखा, वह आदमी तो मुस्कुरा रहा है मानो बाकी दो गुब्बारों के फूटने का इंतज़ार कर रहा है ताकि उसकी और बिक्री हो। मैं धरा का हाथ पकड़कर उसके साथ आगे चल देती हूं।
  धरा और नवीन तो कभी के सो गए है पर मुझे क्यों नींद नहीं आ रही। बार बार उस गुब्बारे वाले लड़के का चेहरा मेरी आंखों के सामने आ रहा है कि किस तरह उसकी मुस्कुराहट हमें देखकर फिंकी पड़ गई थी। आख़िर क्या परेशानी हुई थी उसे? उस से तो कई बार गुब्बारे लिए है पर क्या वो हर बार हमें देखता होगा? धरा को गुब्बारे फोड़ते हुए देखता होगा? अगर फोड़ भी दिए तो क्या हुआ? उसने तो बेच ही दिए है और गुब्बारों को तो फूटना ही है! फिर खुद से फूटे या फिर जानबूजकर फोड़े क्या फर्क पड़ता है? पर क्या बात इतनी ही सरल है। क्या उसे फर्क नहीं पड़ना चाहिए? किसी चित्रकार के चित्र को खरीदकर अगर हम उसी के सामने फाड़ दे तो क्या उसे बुरा नहीं लगेगा? किसी मूर्तिकार की मूर्ति खरीदकर अगर उसे उसी के सामने तोड़ दे तो क्या उसे बुरा नहीं लगेगा? कहीं यही तो बात नहीं है? मेरा पहला खयाल ही सही था! आख़िर इन गुब्बारों को फुलाने में उसने मेहनेत की ही होगी। जब कई बच्चों को उनके माता पिता से जिद करके भी गुब्बारे ना लेते हुए, उनके उदास चेहरे देखता होगा तो क्या वह भी उदास होता होगा? क्योंकी मुस्कुराते बच्चों को देखकर ही तो वह लड़का मुस्कुरा रहा था। उम्र तो उसकी भी खेलने की ही है। यह दुनियादारी उसे कहा समझ आएगी की धरा का गुब्बारे फोड़ने का शौक उसके लिए फायदे की ही बात है। उसके लिए तो उसकी बनाई हुई, महेनत की हुई कोई चीज टूट रही है। कितना मासूम दिल है उस बच्चे का और उसका दर्द भी तो एक दर्द ही है जो जाने अनजाने हम से ही तो उसे मिला है।


  आज इतवार की छुट्टी है और हम समंदर किनारे घूमने आए है। मुझे और धरा को समंदर बहुत पसंद है। कितना खूबसूरत नजारा है समंदर का। धरा को जाने मिट्टी से कितना प्यार है कि पूरी लौट पोट हो जाती है। दौड़ते दौड़ते तो दो बार गिरी भी पर उठकर हंस पड़ती है। आख़िर हम थक कर कुछ खाने को बैठे है। धरा के पीछे भाग भाग कर मेरी तो हालत ही खराब हो गई है लेकिन धरा को अभी भी खेलना है। मैने बैग में से मिट्टी के घर बनाने के कुछ खिलौने निकाले है। जैसे सोचा था धरा ये सब देखकर तो झूम ही उठी है और अपने सपनों का महल बनाने लगी है। पर उस से इतनी जल्दी कहा बनने वाला है। नवीन उसकी मदद को बढ़ रहे है पर मैं उन्हे रोक रही हूं। नवीन कुतुहल से मेरी तरफ देख रहे है और मैं उन्हें ज़रा धरा की और देखने का इशारा करती हूं। धरा बहुत मेहनत से घर तो बना ही लेती है। अब घर जाने का वक्त हो गया है पर धरा अपने घर को साथ ले जाना चाहती है। "नहीं धरा, अगर हम इसे ले जाने की कोशिश करेंगे तो घर टूट जाएगा। तुम ऐसा चाहती हो क्या?" मैने प्यार से कहा। धरा ना में सर को हिला रही है। "तुम इस घर को समंदर को दे दो। फिर दूसरी बार नया घर बना लेना" मैने कहा। धरा जैसे तैसे मान गयी पर लहरों का पानी बढ़ने लगा है। लौटते हुए मैने धरा से कहा , "अगर चाहो तो अपने घर की एक तस्वीर खींच लो।" धरा मुस्कुरा उठी और जैसे ही वह पीछे मुड़कर देखती है समंदर की लहरे उसके घर को तोड़ चुकी है। एकाएक धरा की आंखों में आसूं आ जाते है और उसे देखकर मेरी भी। धरा ने कहा : " मम्मी, समंदर ने कुछ ही देर में मेरा घर क्यों तोड़ दिया? मैने कितना अच्छा घर बनाया था।" नवीन हम दोनों को देखकर कुछ समझने की कोशिश कर रहे है पर इतना तो समझ ही चुके है कि कुछ जरूरी बात चल रही है और वह इसे रोकना नहीं चाहते। मैने धरा से कहा, " तो क्या हुआ धरा तुमने तो इसे समंदर को दे दिया था, फिर वह कुछ भी करे। तुम भी तो उन गुब्बारे वाले बड़े भैया के गुब्बारे लेते ही उन्हें फोड़ देती हो, सोचो उन्हें कितना बुरा लगता होगा!" धरा बिल्कुल चुप है, जैसे ना जाने किन सवालों मे उलझ गई हो? क्या मेरी नादान धरा इन बातों को समझ भी पाएगी? नवीन मुस्कुराकर घर चलने का इशारा करते है। 


  घर पहुंचते ही धरा दौड़कर उछलने कूदने लगी है। मतलब गई भैंस पानी में! नवीन भी हस पड़े है और फ्रेश होने जा रहे है। लगता है जो कुछ भी अभी हुआ धरा तो कुछ समझी ही नहीं। मुझे भी शायद अब यह सब भूलना ही पड़ेगा और किसी और तरह किसी और दिन इसे समझाना पड़ेगा। खैर अभी तो मैं बहुत थक गई हूं। "धरा" मैं धरा को आवाज़ लगाती हूं, "बाद में खेल लेना पहले नहा लो, पूरे घर में मिट्टी फैल रही है।"


  आज मैं बिल्कुल वक्त पर ही स्कूल पहुंची हूं। बेल बस बजने ही वाली होगी, लो बज गई। दौड़ते हुए धरा मम्मी मम्मी चिल्लाते हुए आ रही है। दिल चाहता है यह पल मेरी ज़िन्दगी में यूं ही आते रहे। बरसो तक। धरा अपनी क्लास की सारी बाते बता रही है, आज उसने क्या-क्या सीखा, अपना टिफिन फिनिश भी किया तभी उसका ध्यान गुब्बारे वाले लड़के पर जाता है। फिर से धरा "मम्मी गुब्बारे, गुब्बारे" चिल्लाने लगती है और मुझे खींच कर उस लड़के के पास ले जाती है। मैं उस लड़के से कहती हूं ," दो गुब्बारे देना।" वह मौन रहकर गुब्बारे दे देता है। मैं उसे पैसे देती हूं वह चुपचाप पैसे ले रहा है पर अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने देता। तभी धरा उस लड़के से कहती है कि, "बड़े भैया, अब मैं इसे नहीं फोडूंगी। वह लड़का अचंभित रह जाता है। जाने उसके मन की बात धरा कैसे समझ गई! यह बात उसके अंदर जैसे घुम ही रही है पर पल भर में ही उसने सभी सवालों को नजरंदाज कर दिया है और मुस्कुरा उठा है। धरा भी उसे मुस्कुराता देख मुस्कुरा उठी और मेरी तरफ देख रही है जैसे मुझे बता रही हो की वह उस दिन कि कोई बात नहीं भूली और ना कभी भूलेगी। मुझे अपनी बेटी पर गर्व हो रहा है। मैने उसे गले लगा लिया और गोद में उठा लिया। आज मेरे मन में खुशियों का समंदर उठ रहा है। चलते चलते बार बार मैं धरा को चूम रही हूं और वो खिलखिला रही है। हम पीछे मुड़कर गुब्बारे वाले उस लड़के को देखते है वो अब हमे देखकर मुस्कुरा रहा है। जानें आज किसने खुशियां बेची है और किसने खरीदी है सभी मुस्कुरा रहे है। अब धरा यह गुब्बारे नहीं फोड़ेगी, यह घर तक जाएंगे, यह खुशियों के गुब्बारे है।

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