नदी पर कविता - Poem On River In Hindi
आज हम आपके लिए लाए है नदी पर कविताएं। नदी प्रकृति की वह रचना है जो सभी जीवों का उद्धार करती है। बस्ती, गांव, शहर जिसके किनारे विकसित होते है वह नदी है। जो निरंतर बहती है और लोगो का कल्याण करती है ऐसी परोपकारी नदी पर यह कविताएं प्रस्तुत है।
नदी पर कविता -
बहती बहती नदी है आती
ऊंचे पर्वत से राह बनाती
अपने मीठे पानी से यह
सब जीवों की प्यास बुझाती
हंसती खेलती अपनी मौज में
सब को पानी से जीवन देती
कभी ना रुकना कभी ना थकना
जन जन को है यह सिखलाती
खूब जोर से खूब शोर से
कभी मद्धम कभी पूर जोर से
अविरत बहती मिलने सागर से
जीवन को अपने सार्थक करती
नदी है चंचल और प्रतिबद्ध
जीवन कर्म से यह उपकार है करती
है नमन तुमको नदी हमारा
जो विशाल मन से सब अर्पण करती
Poem On Rivar In Hindi -
Bahati Bahati Nadi Hai Aati
Unche Parvat Se Raah Banaati
Apne Meethe Paani Se Yah
Sab Jeevo Ki Pyaas Bujhaati
Hasti Khelti Apni Mauj Mein
Sab Ko Paani Se Jeevan Deti
Kabhi Naa Rukna Kabhi Naa Thakna
Jan Jan Ko Hai Yah Sikhlaati
Khoob Zor Se Kabhi Khoob Shor Se
Kabhi Maddham Kabhi Poor Zor Se
Avirat Bahati Milne Saagar Se
Jivan Ko Apne Yah Saarthak Karti
Nadi Hai Chanchal Aur Pratibaddh
Jivan Karm Se Yah Upkaar Hai Karti
Hai Naman Tumko Nadi Hamaara
Jo Vishal Man Se Sab Arpan Karti
बहुत काम की नदी हमारी - नदी पर कविता
कितनी सुंदर कितनी प्यारी
बहुत काम की नदी हमारी
कल कल करके गाया करती
बहुत दूर से आया करती
सबेरे जाते सब नदी किनारे
नहाने को तो कोई कपड़े धोने
हमें तो खेलने वह बुलाया करती
सब बच्चे खेलते वह हंसती रहती
बारिशों में वह खूब मुस्काती
बहुत जोर से शोर मचाती
हर तरफ हरियाली नदी को भाती
सब को पानी देने वह दूर से आती
सब मुश्किलों को पार वह करती
किसी के रोके कभी ना रुकती
क्या पर्वत और क्या है घाटी
कहीं से भी नदी अपनी राह बनाती
मिलने सागर से वह आगे जाती
हम सब की बात वह उसे बताती
जीवन भर सभी को सब कुछ देती
समर्पण भाव नदी हमें सिखाती
Bahut Kaam Ki Nadi Hamaari - Poem On Rivar In Hindi
Kitni Sundar Kitni Pyari
Bahut Kaam Ki Nadi Hamaari
Kal Kal Karke Gaaya Karti
Bahut Door Se Aaya Karti
Sabere Jaate Sab Nadi Kinare
Nahaane To Koi Kapde Dhone
Hum To Jaate Sab Bachhe Khelne
Nadi Pyaar Se Bulaaya Karti
Barishon Mein Wah Khoob Muskaati
Bahut Zor Se Shor Machaati
Har Taraf Hariyaali Nadi Ko Bhaati
Sab Ko Paani Dene Wah Door Se Aati
Sab Mushkilon Ko Paar Wah Karti
Kisi Ke Roke Kabhi Naa Rokte
Kya Parvat Aur Kya Hai Ghaati
Kahin Se Bhi Nadi Apni Raah Banaati
Milne Saagar Se Wah Aage Jaati
Hum Sab Ki Baate Wah Use Bataati
Jivan Bhar Sabhi Ko Sab Kuch Deti
Samarpan Bhaav Nadi Humein Sikhaati
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