Moral Stories For Kids In Hindi - Kalu Chor Ki Kahani | Bachhon Ki Hindi Kahaniyan

 Moral Stories For Kids In Hindi - Kalu Chor Ki Kahani | Bachhon Ki Hindi Kahaniyan

Moral Stories For Kids In Hindi


कालू चोर की कहानी - बच्चों की हिंदी कहानियां 

  एक समय की बात है। एक गांव में अमीरचंद नामक एक सेठ रहता था। वह बहुत धनवान था और अपना धन बहुत संभालकर रखता था। उसे अपने धन के चोरी हो जाने की बहुत चिंता रहती थी इसलिए अपने किसी भी नौकर पर वह पूरा भरोसा नहीं करता था।

  बहुत दिनों से कालू चोर की नजर सेठजी के धन पर थी। वह जानता था की सेठ बहुत होशियार है और धन बहुत छुपाकर रखा होगा। कालू चोर ने एक तरकीब सोची और काम पर लग गया। वह नोकरी मांगने के लिए सेठजी की काम की जगह पहुंच गया। सेठजी का धंधा बहुत अच्छा चलता था इसलिए वहा व्यापारियों का बहुत आना जाना होता था। कालू चोर ने एक सोने के सिक्कों से भरी छोटी से थैली सेठजी को दी और कहा की मुझे यह पैसे आपकी दुकान के बाहर मिले है शायद आपके होंगे। सेठजी ने तुरंत वह थैली ले ली और सोचा की किसी व्यापारी ने गलती से गिरा दी होगी। सेठजी ने कहा की हां मेरी ही है, मैं कब से ढूंढ रहा था। तुम कौन हो, पहले तो तुम्हें कभी नही देखा। कालू ने कहा की मैं नोकरी के लिए आया हूं। मेरा नाम कल्लूराम है। मैं बहुत गरीब हूं और मुझे काम की सक्त जरूरत है। मैं अपना काम पूरी ईमानदारी से करूंगा और आप को कभी शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगा। 

  Hindi Stories For Kids - Bachhon Ki HIndi Kahaniyan

  सेठजी सिक्के की थैली पाकर पहले ही कल्लूराम पर बहुत खुश थे। सेठजी ने सोचा की इतना गरीब होते हुए भी इसने सोने के सिक्कों से भरी थैली मुझे दी इससे तो पता चलता है की यह बहुत ही ईमानदार है और मुझे तो ऐसे ही नौकर की तलाश थी। सेठजी ने कहा ठीक है तुम काम पर रह जाओ पर तुम पगार कितना लोगे। कल्लूराम ने कहा की बस दो वक्त का खाना और जो भी आप खुशी से दे दे मालिक। सेठजी ने मान लिया। 

  शाम को सेठजी कल्लूराम को अपने साथ घर ले गए। घर पहुंचते ही कल्लुराम ने है तरफ नजर दौड़ाना शुरू कर दिया। सेठजी ने उसे बैठक में ही रुकने के लिए कहा और कमरे में अंदर चले गए। लेकिन वह तो कालू चोर था वह चुपके से सेठजी के पीछे गया और खिड़की से देखा की सेठजी एक तस्वीर के पीछे छुपी हुई तिजोरी में पैसे रख रहे थे। इतना देखकर कालू तुरंत बैठक में आ गया। फिर सेठजी बाहर आए और दूसरे नौकरों को बुलाया और कल्लुराम की पहचान कारवाई। कल्लूराम खाना बनाने के लिए मदद करने रसोईघर में गया और चुपके से नींद की दवाई खाने में मिला दी। खाना खाने के बाद सेठजी और उनके के परिवार को थकान महसूस हुई तो वह सोने चले गए। सारे नौकर अपने अपने काम में व्यस्त थे। कालू चोर ने देखा तो सेठजी और सेठानी जी कमरे में जाते ही सो गए थे। उसने तुरंत कमरे का दरवाजा बंद किया और जेब से बहुत सी चाबियां निकाली और तिजोरी खोलने लगा। कालू चोर तिजोरी खोलने में माहिर था इसलिए थोड़ी देर कोशिश करके उसने तिजोरी खोल ली और सारे पैसे, गहने और सोने के सिक्के जिसमें कालू चोर के भी सिक्के थे उसे लेकर भाग गया। 

  सुबह सेठजी की नींद खुली तो उन्होंने देखा की तिजोरी खुली हुई है। उन्होंने सभी नौकरों को आवाज लगाई और कल्लुराम को भी। सारे नौकर आए लेकिन कल्लूराम नहीं आया। सेठजी समझ गए की उन्हें ठगा गया है। एक चोर की छोटी सी सोने के सिक्कों की थैली देखकर उसपर भरोसा करने पर उन्हें बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। सेठजी बहुत पचता रहे थे।

सीख : कभी भी किसी पर बहुत जल्दी भरोसा नहीं करना चाहिए। 

Bakri Chor Ki Kahani - Moral Stories In Hindi

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बकरी चोर की कहानी - बच्चों की हिंदी कहानियां

  एक बार विजयपुरा नामक एक राज्य में राजा राजसिंह के दरबार में एक फरियाद आई। दो लोग किसनलाल और अमृतलाल एक बकरी के लिए लड़ रहे थे। दोनों का यह कहना था की वह बकरी उनकी है लेकिन दूसरा उसे अपनी बता कर ले जा रहा है।

  राजा के एक चतुर मंत्री जयसिंह ने दोनो को अपना अपना अपना पक्ष रखने ले लिए कहा। किसनलाल ने कहा , "महाराज यह बकरी मेरी है और मुझे बहुत प्यारी है, इसका जन्म मेरे ही घर हुआ था और मैंने ही इसे बड़ा किया है।"

  अमृतलाल ने भी यही बाते कही। अमृतलाल उस वक्त कोई दूसरा जवाब सोच नहीं पाया तो वही सब उसने भी कह दिया हो किसनलाल ने कहा था। मंत्री जयसिंह को अमृतलाल पर शंका हुई।

  मंत्री जयसिंह ने दोनों से कहा की ठीक है अगर आप दोनो यह कह रहे हो की बकरी को आपने बड़ा किया है और आपको बहुत प्यारी है तो इस बकरी की कोई भी तीन खास बात या आदतें बताओ। इसबार पहले अमृतलाल को जवाब देने के लिए कहा गया।

  अमृतलाल बहुत डर गया क्योंकि यह बकरी उसकी नहीं थी और उसे इसकी किसी भी आदत की जानकारी नहीं थी। फिर भी उसे कुछ तो कहना ही था। अमृतलाल ने कहा "जब मैं इस बकरी को घास खिलाता हूं तो यह खा लेती है, जब पानी पिलाऊ तो पी लेती है और कुछ भी पूछूं तो 'मैं' में। जवाब देती है।" 

  मंत्री जयसिंह की शंका और पक्की हो गई और उन्होंने कहा की ठीक है, तुम्हें लगता है जो तुमने बताई है वह बहुत खास बात है तो अब हम किसनलाल की बात भी सुन लेते है। 

  किसनलाल ने कहा, " महाराज मेरी बकरी बहुत जिद्दी है, जब तक उसे सुबह चारा पानी ना दो वह दूध नहीं देती। अगर उसकी पीठ पर हाथ फैलाओ तो वह बहुत खुश हो जाती है और जब भी मैं इसे बैठने के लिए कहता हु तो यह बैठ जाती है।"

  मंत्री जयसिंह ने कहा ठीक है किसनलाल तुमने जो भी कहा है उनमें से दो बाते तुम यहां साबित कर सकते हो क्योंकि बकरी यही है। अपनी बात साबित करो। 

  किसनलाल अपनी बकरी के पास गया और प्यार से उसकी पीठ सहलाने लगा। इससे बकरी बहुत खुश हो गई और प्यार से 'मैं - मैं' बोलने लगी। फिर किसनलाल ने बकरी को उसके नाम से पुकारा और कहा, "चंदेरी बैठ जाओ, बैठ जाओ चंदेरी।" बकरी बैठ गई। किसनलाल ने अपनी बात साबित कर दी। 

  यह सब देख कर अमृतलाल समझ गया की उसका जूठ अब पकड़ा गया है इसलिए वह महाराज से माफी मांगने लगा। दया याचना करने लगा। महाराज ने अमृतलाल को सख्त हिदायत दी की फिर से कभी ऐसा कोई काम ना करे और उसे 50 चांदी की मोहरे राजकोष में जमा करने का दंड दिया।

  महाराज ने अपने मंत्री जयसिंह की बुद्धिमानी की प्रशंसा की और किसनलाल को उसकी बकरी लौटा दी।किसनलाल ने महाराज और मंत्री जयसिंह को प्रणाम किया और अपनी बकरी को लेकर घर चला गया।

सीख : जो चीज़ आपकी नही है उसे जूठ बोलकर नहीं लेनी चाहिए।



  
  

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