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शर्मा जी की कार
Hindi Kahaniya |
शर्मा जी की पत्नी का बड़ा दिल करता था और वो बार बार शर्मा जी को मनाने की कोशिश करती थी, पर शर्मा जी थे की तैयार ही नहीं थे कार लेने के लिए। वह कंजूस तो नही थे पर पैसों की फिजूल खर्ची उन्हें पसंद नही थी। आखिर श्रीमती जी के आगे वह हार गए और एक चम-चमाती हुई गाड़ी घर ले आए। गाड़ी देखने में बहुत सुंदर थी और महंगी भी क्योंकि शर्मा जी का मानना था कि अगर कोई सामान लो तो ऐसा लो की चार लोग देखकर कहे की वाह, क्या बात है!
नई कार घर आते ही जैसे शर्मा जी के घर की शोभा चार गुनी हो गई.. घर के आंगन में महंगी कार आने जाने वालों की नजर से बच नहीं पाती थी.. लगभग सभी एक बार उसे देखकर आगे बढ़ते थे.. शर्माजी यह देखकर फूले नहीं समाते थे। उनकी पत्नी पहले पहले तो बहुत खुश हुई की शर्मा जी उनकी बात मान कर कार ले आए पर मजाल थी के वो कार को अकेले कही बाहर ले जाए.. वह कार तो बस शर्मा जी के लिए एक सुंदर शो पीस थी, जिसे बस वह कभी कभी सड़को पर दौड़ाते थे वरना छोटे मोटे कामों के लिए अभी भी टैक्सी मंगा लेते थे। उन्हें अपनी कार को नई और चमचमाती जो रखनी थी।
एक दिन शर्मा जी से मिलने उनके परम मित्र दुबे जी आए.. दुबे जी ने कार देखी तो शर्मा जी को बधाईयां देने लगे। शर्मा जी कार की तारीफ सुनकर बहुत खुश हुए.. लेकिन तभी शर्मा जी की पत्नी आई और बोली अब क्या आचार डालना है इस कार का, कार घर में होने के बाद भी न होने के बराबर है.. यही कहती हुई आई और पानी देकर वापस चाय लेने किचन में चली गई। दूबे जी कुछ समझे नहीं और शर्मा जी की तरफ देखने लगे पर वह कुछ न बोले.. उनकी पत्नी वापस चाय लेकर आई और कहने लगी सालों से कार लेने का मन था, और जब आखिर में ली तो आपके दोस्त इसे इस्तेमाल करने नही देते और तो और खुद भी इस्तेमाल नहीं करते बस दिन रात इसे चमकाते रहते है और आने जाने वालों से इसकी तारीफ सुनते है जैसे रास्ते पर चलने से यह कार आधी हो जायेगी..
दुबे जी समझ गए.. वह शर्माजी को बहुत लंबे समय से जानते थे और उनके स्वभाव को भी पर उन्हें शर्मा जी की पत्नी के लिए बुरा लग रहा था इस लिए उन्होंने सोचा कुछ तो करना पड़ेगा..
दुबे जी ने कहा अरे भाई यह क्या बात हुई इतनी बढ़िया कार और उसके साथ ऐसी नाइंसाफी। शर्मा जी कुछ समझे नहीं और पुछा क्या मतलब? दुबे जी ने कहा जब इतनी अच्छी कार ली है तो क्या बस गली के चार लोगो को दिखाने के लिए ली है क्या? अगर मैं घर ना आता तो मुझे पता भी ना चलता इस कार का। न हमारे सभी मित्र इस बारे में जानते होगे न आपके सारे रिश्तेदार। अगर इसे सड़क पर नहीं दौड़ाओगे तो इसमें शान वाली बात ही क्या रहेगी.. और एक तरह से तो यह कार की भी बेइज्जती है, क्योंकि इसे शो पीस ही बनना था तो यह शो रूम में ही ज्यादा अच्छी थी ना.. ना यह भाभी जी के किसी काम आ रही है और ना आप इस कार के किसी काम आ रहे हो भला इसमें तो बस सभी का दिल दुख रहा है.. और क्या भाभी जी के मायके में कार नहीं है उन्हें क्या कार चलाना नहीं आता!!
यह सब बाते शर्मा जी को जैसे सही लगी और वह बोले, शायद आप ठीक ही कह रहे हो दुबे जी, कार सिर्फ सजावट का सामान नहीं है और आखिर यह कार ली थी तो वह भी शर्माइन के लिए ही.. यह सुनते ही उनकी पत्नी खुश हो जाती है। शर्मा जी अपनी पत्नी से कहते है ठीक है अब से जरूरी काम हो तो ले जाया करना कार। शर्मा जी की पत्नी कहती है चाय ठंडी हो गई है, गरम करके लाती हूं और दूसरी चाय और कुछ बिस्कुट ले आई और दुबे जी से कहा भाई साहब आज आप रात का खाना खाकर ही जाना और शर्मा जी कार की चाबियां मांगी क्योंकि कुछ अच्छा जो बनाना था रात के लिए और इस लिए बाजार जाना था.. शर्मा जी तुरंत मना करने वाले थे कार ले जाने के लिए पर उन्होंने खुद को रोक लिया और भारी मन से हंसते हुए कार की चाबी दे दी.. और बाते करने लगे.. शरमाई खुशी खुशी निकली और कुछ मिनटों बाद ही शर्मा जी का मोबाइल बजा, वह चाय का कप छोड़ कर मोबाइल उठाने लगे वह हैरान हुए की अभी तो शर्माइन निकली है इतनी जल्दी फोन क्यों किया.. फ़ोन सुनते ही उनके दूसरे हाथ में उठाया बिस्कुट चाय में गिर गया और वह जोर से बोल पड़े, " क्या बाहर निकलते ही नई कार ठोक दी!" इतना सुनते ही दुबे जी जिन्होंने चाय बस मुंह को लगाई थी उसे एक ही घूट में पीकर बाजू से हटकर तुरंत बाहर निकल गए.. शर्मा जी की उनपर नज़र पड़ते ही वह दुबे जी पर क्या चिल्लाकर रोके सोच नही पाए और बस अपना सर पकड़कर बैठ गए..
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