हिंदी कहानियां - प्रेम और चतुराई

हिंदी कहानियां - प्रेम और चतुराई 

     हरिपुर नगर में सेठ ध्यानचंद का बहुत नाम था। उनका कारोबार काफी फैला हुआ और समृद्ध था, जिसे उन्होंने अपने विश्वसनीय कर्मचारियों के बल पर खड़ा किया था जो कई वर्षो से उनकी सेवा में थे। सेठ ध्यानचंद की एक पुत्री थी जो न केवल रूपवान बल्कि बुद्धिमान भी थी। रूपा उसका नाम था। रूपा अपने पिता के कारोबार में  हर संभव मदद करती थी या यूँ कहें  के उसने सारी जिम्मेदारियां अपने ही कंधो पे ले ली थी और यह भी सेठ ध्यानचंद की चिंता का कारण था की आज नहीं तो कल लड़की की शादी करनी है, उसे ससुराल भेजना है फिर वह घर संसार संभाले या कारोबार। कौन जाने उसके ससुराल में किसी को कारोबार की पड़ी हो या नहीं यही सब दुविधा रहती थी।

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 इस लिए सेठ जी ने निर्णय लिया के किसी योग्य व्यक्ति को योग्य तन्खा पर अपने कारोबार की जिम्मेदारी देंगे जो होशियार भी हो और ईमानदार भी, जो सेठ जी की और से बिना किसी लालच के कारोबार संभाले और सेठजी अपनी बेटी के भविष्य पे ध्यान दे सके। सेठ जी ने मुंशी जी  को कहा के तुरंत समाचार फैला दो की बेहद मेहनती, कुशल और ईमानदार व्यक्ति की हमें जरुरत है. मुंशी जी के कहलवाने पर कई निवेदन आये, लेकिन इनमे से जो उपयुक्त लगे उनमे से आठ लोगो को चुनकर कुछ ही दिनों में मुंशी जी सेठ ध्यान चाँद की हवेली पर आये। सेठ जी की हवेली बेहद आलिशान थी और चमेली के फूलो से महक रही थी। मुंशी ने सेठ जी को प्रणाम किया फिर साथ आये सभी युवको का परिचय करवाया और बातो बातो में हवेली के सुगन्धित वातावरण की प्रशंसा भी की। सेठ जी ने कहा के यह मेरी बेटी रूपा के पसंदिता फूलों की खुशबु है,, चमेली के फूलो की।

      फिर सेठ जी ने बात आगे बधाई और अपने कारोबार का खुद से संक्षिप्त में विवरण दिया ताकि सारे अभी भावक अपने काम को ठीक तरह से जान ले की उनको केवल एक ही व्यक्ति की आवश्यकता है, जो पूरा कारोबार संभाल सके। सब से प्रश्न उत्तर भी किये लेकिन उनकी होशियारी और ईमानदारी के लिए परीक्षा लेने का निर्णय लिया।
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     सेठ जी जानते थे की उनकी बेटी को इनमे से किसी ने नहीं देखा। इस लिए उन्हों ने मुंशी जी से कहा के रूपा से जाकर कहिये के अपनी 7 सहेलियों के साथ आये और जैसा उसने अपना पसंदिता सिंगार किया है बाकि से भी कहे के अपनी अपनी रूचि अनुसार सिंगार कर के आये।
   
     कुछ समय बाद सारी लड़किया आ गयी। रूपा की सहेलिया भी सुन्दर थी और उसी की तरह साजो सिंगार के साथ आयी थी। सेठ जी ने कहा, आप सब में से जो भी मेरी बेटी को पहचान लेगा वह पहली परीक्षा में पास हो जायेगा। इस के बाद एक और परीक्षा होगी और वही निर्णायक होगी। सारे लड़के आनन् फानन में लड़कियों के सामने खड़े हो गए और बार बार अपनी जगह बदलते रहे क्यों की सभी लड़किया श्रीमंत परिवार से नज़र आ रही थी। रूपा बुद्धिमान थी जो अपने पिताजी की परीक्षा समझ गयी, उसे यकीन था के सब हारेंगे, लेकिन एक युवक रूपा के सामने आकर खड़ा रह गया जिसने एक बार भी अपनी जगह नहीं बदली। रूपा उस लड़के को अचानक अपने सामने देख कर चौक गयी और उस युवक के सुन्दर चेहरे से अपनी नज़रे जल्दी हटा ना सकी लेकिन कुछ ही देर बाद शर्म से नज़रे नीची कर ली। आज तक उसने ऐसी भावनाये महसूस नहीं की थी उसे कोई अंजानी ख़ुशी मिल गयी थी।
   
  सेठ जी ने उस युवक को जिसका नाम सुजीत था, उसे शाबाशी दी और अपनी बेटी को सही से पहचान लेने की वजह पूछी। तब सुजीत ने कहा के आप ने अपनी पुत्री से कहलवाया था के जिस प्रकार वह अपनी रूचि से श्रृंगार कर के गयी थी उसी प्रकार उनकी सहेलिया अपनी अपनी रूचि के अनुसार सज कर आये क्युकी आप ने जाते समय अपनी पुत्री को देखा था की वह अपनी रूचि के फूलों से याने चमेली से बालो को सजाकर गयी थी और बाकि युवतियों ने अपनी अपनी रूचि अनुसार अलग अलग फूलो से खुदको सजाया है,और अपनी पुत्री के विषय में आपने केवल यह एक ही बात हमें बताई थी की उन्हें चमेली फूल पसंद है। यह सुनकर रूपा सुजीत की इस बुद्धिमानी से प्रभावित हो गयी और सेठ जी ने फिर से उसे शाबाशी दी। बाकि सभी युवको का जोश ठंडा पड़ चूका था। सेठ जी ने इसे भाप लिया और कहा यह कोई निर्याणक परीक्षा नहीं थी वह तो अभी बाकि है जिस में जो भी उत्तीर्ण हुआ उसे ही इस कारोबार की डोर सँभालने मिलेगी। सब के चेहरों पर फिर से एक जोश चढ़ा.. लेकिन इस बार बाकि कोई इस मौके को गवाना नहीं चाहता था, किसी भी कीमत पर नहीं और सेठ जी ने सब की इस अधीरता को भी भाप लिया।

  सेठ जी ने कुछ बंद डिब्बे मंगवाए जिस में मुद्राएँ जमा करने के लिए केवल एक छेद होता है, मुद्राये अंदर डालने के लिए जिसे निकलने के लिए डिब्बे को पूरी तरह खोलना ही पड़े। सेठ जी ने सारे डिब्बों को आगे पीछे करके सब को एक एक डिब्बा दिया, और कहा यही डिब्बा आप की और मेरी किस्मत का फैसला करेगा। जिसके भी डिब्बे में पूरी पांच चाँदी की मुद्राये होगी वही इस परीक्षा में सफल होगा। किसीको अपनी किस्मत पे भरोसा नहीं था क्युकी अगर किस्मत को साथ ही देना होता तो पहेली परीक्षा में असफल ही क्यों होते ऐसा सब ने सोचा.. लेकिन सुजीत के दिमाग में कुछ और चल रहा था। उसने सोचा के होशियारी की परीक्षा तो हो चुकी और किस्मत के भरोसे तो यह परीक्षा सेठ जी रखेंगे नहीं तो देखते है और उसकी नज़र रूपा पर पड़ी जो ना जाने कब से उसे चोरी चोरी देख रही थी। दोनों ने अपनी अपनी नज़रे हटा ली और रूपा मन ही मन भगवान से प्राथना करने लगी के इस परीक्षा में सुजीत की ही जीत हो।अब प्रश्न प्रेम और चतुराई का था। और यहाँ बाकि सारे युवक परेशानी से बेहाल हो रहे थे, सब अपने अपने डिब्बे हिला कर देख रहे थे के कितनी मुद्राओ की आवाज़ आती है लेकिन आवाज़ से लग रहा था के २ या ज़्यादा से ज़्यादा तीन ही सिक्के थे अंदर। सभी परेशान  थे पर कोई अपनी परेशानी दिखा नहीं रहा था। हर कोई अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लाने की कोशिश कर रहा था। सब को आराम से सोचने का अवसर और एकांत दिया गया था, और सब ने चुपके से एक - एक या दो - दो सिक्के उस डिब्बे के छेद से डिब्बे में डाल दिए ताकि डिब्बे में चाँदी के 5 सिक्के हो जाये। समय पूरा हुआ। सब के बंद डिब्बों को सबके सामने ही चाबी से खोला गया, तो किसी के डिब्बे में 6 सिक्के थे तो किसी के डिब्बे में 7 तो किसी के ८. सिर्फ सुजीत के ही डिब्बे में 5 सिक्के निकले। सब चौक गए। तब सेठ जी ने कहा के सभी के डिब्बों में 5 - 5 सिक्के ही थे लेकिन कुछ सिक्को को डिब्बे से चिपका दिया गया था, ताकि वो डिब्बे में उछले नहीं और उनकी आवाज़ ना हो और सिर्फ सुजीत ने ही ईमानदारी से अपने डिब्बे को ज्यो का त्यों रखा, इसी लिए वही विजेता है। यह सुनकर रूपा से रहा ना गया.. और उसने ख़ुशी के मारे तालिया बजा दी। सेठ जी ने रूपा की और देखा, रूपा की  आँखों में एक अलग ख़ुशी और चमक थी जो सुजीत को देखने से आ रही थी। सेठ जी रूपा को इतना खुश देखकर उसके पास गए और उसकी ख़ुशी देखकर मुस्कुराने लगे। रूपा शर्मा गयी और अपने पिता के गले लग गयी। पिता ने भी प्यार से रूपा के सिर पे हाथ रखकर मंजूरी दे दी, फिर कुछ ही दिनों में सुजीत के कारोबार को ठीक से संभालते ही रूपा और सुजीत की शादी धूम धाम से कर दी।

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